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संरक्षित बीजों के महत्त्व को दर्शाने और आदान-प्रदान के लिए बीज उत्सव में जुटे हजारों आदिवासी

 बीज उत्सव में जुटे हजारो

 

बांसवाड़ा : वर्तमान परिस्थितियों में जलवायु के अनुकूल स्थानीय बीजों की प्रजातियों को विलुप्ति से बचाने और उन्हें बढ़ावा देने, एवं उच्च गुणवत्तावाली पोषक फसलों के परंपरागत बीजों का संरक्षण कर पारंपरिक कृषि पद्धतियों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से, आदिवासी समुदाय ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, और गुजरात के संगम स्थल के आदिवासी क्षेत्र में 18 से 22 जून तक बीज महोत्सव आयोजित किया।
आज कुछ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विश्व भर में बीज संसाधनों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास कर रही हैं। कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक और संकर बीजों की माँग से स्थानीय बीजों का महत्व घटता जा रहा है। इस संदर्भ में, समुदाय स्तर पर प्रत्येक किसान परिवार तक परंपरागत बीजों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने एवं बीज संरक्षण के पारंपरिक तरीकों को पुनर्जीवित करने के लिए 90 से अधिक बीज-उत्सव आयोजित किए गए। कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन, ग्राम स्वराज समूह, सक्षम समूह और बाल स्वराज समूहों के नेतृत्व में महिला कृषकों ने उत्साहवर्धक भागीदारी के साथ इस महोत्सव में दस हजार से अधिक किसानों ने भागीदारी निभाई ।
हमारे स्थानीय बीज जीवन का मुख्य आधार हैं। ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी की सांस्कृतिक धरोहर हैं, जो जैव विविधता बढ़ाते हैं तथा पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं। इन बीजों से हमारे स्वास्थ्य को भी लाभ होता है, क्योंकि ये पोषण से भरपूर और स्थानीय जलवायु के अनुकूल होते हैं। ये बीज किसी भी परिस्थिति में फसल देते हैं, लेकिन बिना संरक्षण और युवा पीढ़ी के इनकी संस्कृति को भूलने के कारण उनकी उपलब्धता कम हो रही है। इस परिस्थिति में, समुदाय की बीज संस्कृति को पहचानने और बीज स्वराज स्थापित करने के लिए इस आयोजन जैसे गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है।
इस पाँच दिवसीय बीज उत्सव में बीजों की प्रदर्शनी के साथ उनके इन्हीं गुणों और महत्व पर संवाद भी किया गया, और परंपरागत रूप से सहेजे गए बीजों का आदान-प्रदान भी हुआ।
अनेक वर्षों से परंपरागत बीजों की रक्षा के लिए समर्पित वाग्धारा संस्था के सचिव जयेश जोशी ने इस अवसर पर कहा कि हमारा आदिवासी समुदाय सदियों से कठिन परिस्थितियों में भी प्राकृतिक संसाधनों की विरासत को सहेजता आ रहा है, और बीज भी इसी विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। संस्था का प्रयास है कि इस प्रकार के आयोजनों से आदिवासी समुदाय अन्य समुदायों और बाहरी दुनिया के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करें, ताकि वे भी स्थानीय बीजों के संरक्षण के लिए प्रेरित हों और बीज स्वराज को सही मायनों में पुनर्स्थापित किया जा सके।
बीजोत्सव में कृषि तथा उद्यान विभाग के अधिकारी और पंचायत तथा अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधि मौजूद थे, जहां इन बीजों को सुरक्षित रखने और संवर्द्धन के लिए सामुदायिक बीज बैंक की स्थापना पर भी बल दिया गया।
इस अवसर पर लगाई गयी प्रदर्शनी में किसानों द्वारा सहेजे हुए लाये गए बीजों की 50 से अधिक किस्मों को सूचीबद्ध किया गया जो विलुप्ति के कगार पर हैं, जैसे अनाजों में काली कांग, लाल मक्का, साठी मक्का, रागी, राजगिरा; दलहन में बैलडिया और उड़द; सब्जियों में भूरा, कद्दू, आबका और पौध वर्ग के गूंदी, अरडू, कोष, नागफाली, टिमरू, रामफल आदि।

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